इस बार क्या केरल में भी खिल जाएगा कमल..?
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सबका साथ सबका विकास की अवधारणा को लेकर निकल पड़ी भारतीय जनता पार्टी ने पूरे मुल्क में विकास की लौ सुलगा रखी है। केरल में पांव जमाना भाजपा के लिए यदि आसान नहीं है तो इतना मुश्किल भी नहीं है। 26 अप्रैल को लोकसभा की 20 सीटों पर मतदान होगा। 2019 में भाजपा के वोट शेयर बढ़कर 13 फीसदी हुए थे। 2014 में भाजपा को 10.05 फीसदी वोट शेयर मिले थे, जबकि 2009 में भाजपा को 6.3 फीसदी वोट मिले थे। हर लोकसभा चुनाव में भाजपा को बढ़त हुईं है, लेकिन इस सूबे से एक भी सांसद भाजपा का नहीं है। इसके विपरीत केरल में इस बार भाजपा का अच्छा प्रदर्शन होगा। पीएम मोदी ने भारतीय जनता पार्टी को डबल डिजिट में सीटें देने की अपील सूबे की पब्लिक से की है।
केरल में साक्षरता 98 प्रतिशत है। पढ़े लिखे वोटर अपना भविष्य किस सरकार के हाथ में है, इसका निर्णय वे अच्छी तरह सोच समझकर कर सकते हैं। इस बार बदलाव की उम्मीद जताईं जा रही है। केरल में पीएम मोदी के दौरे से लोगों की भावना प्रबल हुई है। लेफ्ट की सरकार में करप्शन बढ़ गया है। करप्शन से लोग परेशान हैं। इस बार संसद में केरल का प्रतिनिधित्व करने वाला सांसद जरूर जाएगा। बहुत से कांग्रेस के नेताओं ने भाजपा ज्वाइन कर ली है। केरल में मोदी की मजबूत लीडरशिप से पब्लिक प्रभावित है। इस बार केरल में बदलाव की लहर है। केरल में लेफ्ट ने किए वादे अभी तक पूरे नही किये है। मोदी पर लोगो का भरोंसा है। मोदी की गारंटी पर भरोसा है। पढ़े लिखे लिखे लोग किसी भी पार्टी को आंख बंद करके सपोर्ट नहीं करते है। सूबे का ईसाई समुदाय भाजपा पर भरोसा कर रहा है। इसका फायदा हो सकता है। कांग्रेस में अंदरूनी लड़ाई है। इस बार कांग्रेस की राह आसान नहीं है। पार्टी के पास फंड की कमी है। केरल में 60 फीसदी आबादी ओबीसी की है। केरल में भाजपा आगे बढ़ रही है। पीएम ने अल्लाथुर और पलक्कड़ की सभा मे कहा कि, 'कांग्रेस ने भारत की छवि कमजोर कर दी है। दूसरी ओर भाजपा ने दुनिया में भारत का नाम रोशन किया है।' इस सूबे में यूडीएफ, एलडीएफ और एनडीए वाले तीन गठबंधन की पार्टियां प्रचार प्रसार कर पब्लिक वोट मांग रही हैं। उम्मीद की जा रही है कि पीएम मोदी की गारंटी इस बार सूबे में अपना रंग दिखाएगी और वोटरों को अपनी तरफ खींचेगी।
बहरहाल, यह तो चार जून को लोकसभा चुनाव परिणाम की घोषणा के बाद ही पता चलेगा कि दक्षिण के इस राज्य में पब्लिक को अपनी ओर खींचकर भारतीय जनता पार्टी कमल खिलाने में कहां तक कामयाब हुई है।